आरती

गणपतीची आरती लिहून-Ganpati Aarti

हिंदू धर्म के प्रसिद्ध भगवान श्री गणेश के आराधना और पूजा का एक अहम हिस्सा है गणपतीची आरती. यह धार्मिक अनुष्ठान न केवल हिंदू समाज में प्रसिद्ध है बल्कि यह भारत के विभिन्न हिस्सों में बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। इसलिए, हम आपके सामने प्रस्तुत करते हैं एक लेख जो आपको इस आरती के बारे में समझने और सीखने में मदद करेगा।

गणपतीची आरती का अर्थ

गणेश जी के आराधना का एक अहम हिस्सा है गणपतीची आरती। इस आरती के माध्यम से भगवान गणेश की स्तुति की जाती है। इसके अलावा, इस आरती के बोलों में भगवान गणेश के विभिन्न नामों का उल्लेख भी होता है। इस आरती को रोज सुबह और शाम के समय गाया जाता है ताकि भगवान गणेश हमेशा हमारे साथ रहें और हमेशा हमारी मनोकामनाएं पूर्ण करें।

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गणपतीची आरती के लाभ

गणपतीची आरती के बोलों का अधिकांश हिस्सा संस्कृत में होता है जो मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाता है !

गणपतीची आरती सुखकर्ता

कई संस्कृति वाले भारतीय उपनिषदों में गणेश जी को सबसे पहले वंदनीय देवता माना जाता है। श्री गणेश जी हमेशा से ही हिंदू धर्म के प्रतीक और सबसे अधिक पूजित देवताओं में से एक हैं। उन्हें देवताओं का प्रथम पूज्य होना चाहिए क्योंकि वे शुभ और मंगलकारी होते हैं। गणेश जी अपनी विशेषता के कारण पूज्य और उन्हें प्रसन्न करने के लिए अर्पित किया जाता है।

गणपतीची आरती हमेशा से ही एक बहुत ही प्रसिद्ध आरती रही है जो हिंदू धर्म में बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह आरती श्री गणेश जी को समर्पित है जिनके नाम का अर्थ सुख कर्ता होता है। गणपतीची आरती को हमेशा अपने घर में पवित्र स्थान पर रखने की अभिव्यक्ति की जाती है ताकि घर की सुरक्षा और समृद्धि के लिए श्री गणेश जी का आशीर्वाद बना रहे।

गणपतीची आरती का वर्णन हमें गणेश जी की समस्त गुणों और उनकी महिमा के बारे में बताता है। यह आरती भक्तों को सभी संभव लाभों से समृद

गणपती आरती सुखकर्ता दुखहर्ता Lyrics

गणपती आरती सुखकर्ता दुखहर्ता जय देव जय देव।
तुमच्या द्वारींदे आनंद घेऊनी पावन प्रकाश पोहोचवो।
आरती साजे कीजे अर्पण, हृदय निर्गुण भावना ध्यावो।
शेवटी उत्तर दिया तुझे, दिननाथ आरती गावो॥

अनुक्रमणिका:
सुखकर्ता दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची।
नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची॥

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

एकदंत दयावंत चार भुजाधारी।
माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी॥

पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे संत करें सेवा॥

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

अंग अंग छांवड़े उश्णीष विराजतो।
कोटी सूर्य सम ज्योत निर्भय करतो॥

कर में लंबदंतरी कर घड़ी की छांव।
दो भुज चार चढ़े हाथी बैठे संवार।

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता मह

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