टिहरी जनपद के रानीचौरी की सुषमा बहुगुणा ने पढ़ाई पूरी करने के पश्चात परिवार को यह बताया था कि वह सरकारी सेवा कर सकती है। पर भविष्य में कुछ और ही लिखा था। हालांकि सुषमा को सरकारी सेवा का अवसर भी मिला, मगर उन्हें तो महिलाओ के आत्मनिर्भरता के लिए मिशाल पेश करनी थी। फलस्वरूप इसके आज वह उत्तराखंड में महिलाओ के लिए स्वरोजगार प्राप्त करने की प्रतिमूर्ति उभर कर आई।
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सुषमा ने स्वयं के बलबूते एक उद्यम खड़ा करने की ठान डाली। साल 2014 में सुषमा ने अपने ही घर में धूपबत्ती, अगरबत्ती, मोमबत्ती आदि बनानी आरंभ कर दी।इसके लिए सुषमा ने कई तरह के संघर्षों का सामना किया। जैसे बहुत अच्छी पढ़ी लिखी है, क्या हो जाएगा, क्यों खरीदेंगे लोग गांव में बने उत्पाद बगैरह बगैरह। वह इन सभी बातों को नजर अंदाज करती हुई अपने “मिशन उद्यमी” की ओर आगे बढ़ती गई। वर्तमान में सुषमा बहुगुणा राज्य के सफल उद्यमियो में शुमार है।
टिहरी की सुषमा बहुगुणा
सुषमा को स्वावलंबन की दिशा कहां से मिली? वह बताती है कि एक बार वह दिल्ली, उसके बाद प्रतिष्ठित हेस्को संस्था के मार्फत सुषमा बहुगुणा को महिला समूह के साथ हैंडीक्राफ्ट और स्वरोजगार के लिए कार्यशाला में रहने का मौका मिला। कार्यशाला में पंतनगर यूनिवर्सिटी के प्राध्यापकों ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अलग-अलग तरह के कार्यों पर प्रशिक्षण दिया। जिनमें सुषमा बहुगुणा एक थी। सुषमा बहुगुणा को इस कार्यशाला में यह मालूम नहीं हुआ कि वह जो सीख रही है वह आने वाले दिनों में सुषमा बहुगुणा की जीविका तथा अन्य लोगों को प्रेरित करने का एक उद्यम के रूप में सामने आएगा।
दरअसल हुआ यूं कि प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद सुषमा बहुगुणा ने वर्ष 2014 में अपने ही घर में सबसे पहले धूपबत्ती, अगरबत्ती, मोमबत्ती आदि तरह-तरह के उत्पाद बनाने आरंभ कर दिए। एक साल तक यह उत्पाद बनते गए, पर बाजार में कुछ खास पहुंच नही बन पाई। उन्हे यह समझ आई कि उन्हें एक ही उत्पाद पर काम करना चाहिए।
आराधना धूप ने बनाई विशिष्ट पहचान
टिहरी की सुषमा बहुगुणा ने सिर्फ और सिर्फ धूपबत्ती पर काम शुरू किया और आज “आराधना धूप” ने उत्तराखंड में एक विशिष्ट पहचान बनाई हुई है। बता दें कि सुषमा बहुगुणा द्वारा स्थापित इस उद्यम के साथ एक दर्जन से अधिक महिलाएं स्वरोजगार प्राप्त कर रही है। यही महिलाएं आराधना धूप बनाती है, पैकिंग करती है, ग्रेडिंग करती है, लेबलिंग करती है और तमाम बाजारों में पहुंचाने का काम भी यही महिलाएं करती है। सुषमा बहुगुणा के इस कार्य से आजू बाजू की और राज्य की अन्य महिलाएं काफी प्रेरित हुई है। यही वजह है कि आज सुषमा के स्वरोजगार, स्वावलंबन की दिशा में किए गए उत्कृष्ट कार्यो के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर कई बार सम्मानित किया गया है। अब तो राज्य में कई महिलाएं हैं जो सुषमा बहुगुणा का उदाहरण प्रस्तुत कर आत्मनिर्भरता के कार्य को अपना रही है।
पति ने किया सहयोग
खास बात यह भी है कि सुषमा के इस उद्यम से जितनी भी महिलाएं जुड़ी है वे अपने और सुषमा से कच्चा माल एकत्र करती है और खुद के ही घर से धूप बनाकर “आराधना” उद्यम को देती है। जहां से वह लेबलिंग करके बाजार में पहुंचता है। इस तरह महिलाएं सुषमा बहुगुणा के साथ मिलकर स्वतंत्र रूप से स्वरोजगार प्राप्त कर रही है। सुषमा बहुगुणा का कहना है की वह इस मुकाम तक कभी नही पहुंचती यदि उनके साथ परिवार का परस्पर सहयोग नहीं होता। उनके पति संजय बहुगुणा उनके इस कार्य में बराबर सहयोग करते है।